महंगाई की मार और
चुनावी नेताओं का प्यार।
आम आदमी चिल्ला रहा है
महंगाई की मार से बिलबिला रहा है
अनाज हो गए
गरीबों की पहुंच से बाहर
गरीब आदमी ने कई दिनों से
खाई नहीं दाल राहर।
उधर टमाटर बरपा रहा है
100 रुपये किलो में कहरl
देखो फिर से आ गई
सब्जियों में महंगाई की लहर।
सब्जी पहुंची फलों के भाव
सेठ दिखा रहा है गरीबों को ताव,
जनता हो गई
खर्च कर कर के फकीर
टूट गई उनकी किस्मत की लकीर।
अब फिर चुनाव आ गए हैं
नेता फिर से
वायदों की खेप लाए हैं
कहते हैं हमारा मसीहा आएगा
दूध ,फल ,सब्जी को भी
जनता तक आसानी से पहुंचाएगा,
खाने की थाली लाएगा जनता के करीब
नहीं समझ पाएगी भोली जनता उनकी यह तरकीब,
यह अनाज के बदले मांगने आए हैं वोट,
दे जाएंगे चुनाव में झूठे वादों की
चोट।
पर क्या जनता जानती है
एक बार बढी महंगाई
वापस लौटकर
उसी भाव में कभी नहीं आती है।
फिर जनता इन नेताओं के
चक्कर में
क्यों आसानी से आ जाती है।
नेता केवल गरीबी हटाओ महंगाई हटाओ
के नारे और वायदे दे जाते हैं
चुनाव में यह सब
नई साज-सज्जा के साथ आते हैं
फिर 5 साल बाद गधे के सिर से सिंग
की तरह कहां गायब हो जाते हैं।
चुनाव के पहले नेता
वोटर को ढूंढते हैं
चुनाव के बाद
वोटर इन्हें ढूंढते हैं।