जबलपुर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जिला परियोजना समन्वयक(डीपीसी) का पद मूल पद नहीं है। यह पद शिक्षा विभाग के कर्मचारी को प्रतिनियुक्ति या शिफ्ट करने के लिए सृजित किया गया है। इसलिए इस पद पर किसी कर्मचारी को पदस्थ करना अवैधानिक करार नहीं किया जा सकता। इस मत के साथ जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने डीपीसी पद पर योगेश शर्मा को पदस्थ करने को चुनौती देने वाली याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर उसे खारिज कर दिया।
रमेश प्रसाद चतुर्वेदी ने याचिका दायर कर बताया था कि वह पिछले दो साल से डीपीसी पद पर पदस्थ हैं। सरकार ने प्रदेश में खाली पड़े डीपीसी के पदों को भरने के लिए 21 सितंबर 2022 को विज्ञापन जारी कर आवेदन बुलवाए। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि जबलपुर डीपीसी का पद खाली नहीं था, इसके बावजूद इस पद पर योगेश शर्मा को पदस्थ कर उसे नरसिंहपुर भेज दिया गया।
याचिकाकर्ता का कहना है कि योगेश को उपकृत करने के उद्देश्य से अवैधानिक रूप से डीपीसी के पद पर पदस्थ किया गया है। वहीं कैविएटकर्ता की ओर से अधिवक्ता पुष्पेंद्र यादव ने दलील दी कि विज्ञापन की शर्तों के अनुरूप चयन के बाद कर्मचारी को किसी भी जिले में पदस्थ किया जा सकता है। योगेश की पदस्थापना में कुछ भी अवैधानिक नहीं है। यह पूरी तरह सरकार पर है कि वह किसकी सेवा कहां लेना चाहती है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका निरस्त कर डीपीसी की नियुक्ति को सही करार दिया है।
शिव कुमार संवाददाता दैनिक अच्छी खबर मध्य प्रदेश