शांहशाहे ज़माना भी दरे ख़्वाजा पे आते हैं
मुशायरे में शायरों ने ख़ूब वाहवाही लूटी
कुन्दरकी नगर के मोहल्ला बच्छुआ बाग़ में नूर सिकन्दरी मंज़िल पर तरही मुशायरा ए नअतो मनक़बत का आयोजन किया गया जिसमें शायरों अपने कलाम पेश कर ख़ूब वाहवाही लूटी मुशायरे का आगाज क़ुरआने पाक की तिलावत से हाफ़िज़ ज़ीशान ने किया और खुदा की हम्दे पाक पेश की उस्ताद शायर जनाब शकील साबरी संम्भली ने कहा शकील इतना बता दो आज के साइंस दानों को
आज़ाबे हक़ की आतिश हम अज़ां पढ़ कर बुझाते हैं,
मेराजुल हसन बरकाती कुन्दरकीवी ने कहा दबाएगी उन्हें भी क़ब्र अन्दर तो क्या होगा
दबा कर हक़ किसी का दुनिया में जो दनदनाते हैं,
डॉ नाज़िम कुन्दरकीवी ने कहा
दरे खैबर जो सत्तर सूरमाओं से ना हिलता था
उसे मौला अली शेरे खुदा तन्हा उठाते हैं,
गुलफाम कुन्दरकीवी ने कहा मेरी तिशना लबी को जब कहीं जाकर सुकूं आया
सुना है जब से महशर में के वो कौसर पिलाते हैं, हकीम क़मर अली रज़वी ने कहा सिला क्या ख़ाक पाएंगे भला वो लोग महशर में
जो इन्सां नेकियां कर के यहां एहसां जताते हैं,
ग़ुलाम नबी कुन्दरकीवी ने कहा यक़ी जिसको नहीं वो देख ले अजमेर में आकर
शांहशाहे ज़माना भी दरे ख़्वाजा पे आते हैं
आलम रज़ा कुन्दरकीवी ने कहा पलट आता है सुरज चांद हो जाता है दो पारा
शहंशाहे मदीना जिस घड़ी उंगली उठाते हैं,
इन्तज़ार कुन्दरकीवी ने कहा खुदया बख्श दे अब तो मेरे सरकार की उम्मत
मेरे सरकार उम्मत के लिये आँसू बहाते हैं, महफ़िल की सरपरस्ती शकील साबरी संम्भली ने और संचालन हकीम क़मर अली रज़वी ने किया इस अवसर पर मुफ्ती सुब्हान रज़ा अबरार हुसैन अत्तारी अरकान रज़ा अस्जदी मौलाना बिलाल रज़ा क़ादरी मौलाना आसिफ रज़ा सुब्हानी रिज़वान अली मुहम्मद हनीफ मोहम्मद फैज़ान आदि मौजूद रहे
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