होलाष्टक लगते ही रूक जाते हैं सभी मांगलिक कार्य

होली का नाम सुनते ही हम अपने चारों ओर रंग बिरंगे चेहरे, उल्लास, उमंग व खुशी से सराबोर लोग दिखाई देने लगते हैं। रंग बिरंगी होली से पहले दिन होलिका का दहन किया जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इतनी उमंग व उल्लास से भरे इस पर्व से आठ दिन पहले ही लोग शुभ कार्य क्यों नहीं करते? जी हां होली से ज्योतिष शास्त्र में होली से आठ दिन पूर्व शुभ कार्यों के करने की मनाही होती है। होली से पूर्व के इन आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। इस वर्ष होलाष्टक (03 मार्च) से शुरु हो रहा है जो कि होलिका दहन (09 मार्च 2020) के दिन तक रहेगा। 
होलाष्टक में दो शब्दों का योग है। होली और अष्टक यहां पर होलाष्टक का अर्थ है होली से पहले के आठ दिन। इन आठ दिनों में विवाह हो या ग्रह प्रवेश या फिर अन्य कोई भी ऐसा शुभ कार्य जिसे करने के लिये शुभ समय देखने की आवश्यकता आपको पड़ती है, नहीं किया जाता। मान्यता है कि हरिण्यकशिपु ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवद् भक्ति से हटाने और हरिण्यकशिपु को ही भगवान की तरह पूजने के लिये अनेक यातनाएं दी लेकिन जब किसी भी तरकीब से बात नहीं बनी तो होली से ठीक आठ दिन पहले उसने प्रह्लाद को मारने के प्रयास आरंभ कर दिये थे। लगातार आठ दिनों तक जब भगवान अपने भक्त की रक्षा करते रहे तो होलिका के अंत से यह सिलसिला थमा। इसलिये आज भी भक्त इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं। उनका यकीन है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से उनमें विघ्न बाधाएं आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।
 
वाराणसी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार फागुन शुक्ल एकादशी तिथि पांच मार्च को सुबह 7.52 बजे लग रही है जो छह मार्च को सुबह 6.51 बजे तक रहेगी। काशी में रंगों की शुरूआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव गौरा पार्वती का गौना करा कर अपनी नगरी काशी ले आए थे। इससे पहले वसंत पंचमी पर तिलक व महाशिवरात्रि पर विवाह की रस्में निभाई गई थीं। काशी में इस दिन श्रीकाशी विश्वनाथ विश्वेश्वर का अबीर-गुलाल से विधिवत पूजन-अभिषेक किया जाता है।सायंकाल शिवालयों में माता पार्वती संग भगवान शिव की गुलाल-पुष्प से होली होती है  और होलिकोत्सव आरंभ हो जाता है। 

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