इंदौर में चार साल की किसी मासूम बच्ची को अपनी हैवानियत का शिकार बनाने वाला अधेड़ अपराधी दयालु हो सकता है ? वो भी सिर्फ इस आधार पर कि उसने दरिंदगी करने के बाद खून से लथपथ और बेसुध बच्ची को जिंदा छोड़ दिया और इसी आधार पर अदालत ने उसकी आजीवन जेल की सजा को कम कर 20 साल कर दिया। इंदौर हाईकोर्ट के इस फैसले को लेकर समाज और कानून जगत में गंभीर बहस छिड़ गई है। इस फैसले से प्रदेश सरकार के उस कानून के लिए भी चुनौती खड़ी हो गई है जिसमें महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म जैसे संगीन जुर्म के आरोपियों को जीवन की आखिरी सांस तक जेल में बंद रखने का प्रावधान किया गया है। कानून के कई जानकार और महिला अधिकारों की आवाज उठाने वाले संगठन हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के लिए जनमत तैयार करने में जुट गए हैं।

आखिर क्या है पूरा मामला

आइए सबसे पहले आपको बताते हैं कि ये मामला क्याा है। दरअसल इंदौर में 31 मई 2007 को आरोपी रामसिंह उर्फ रामू ने आईटीआई मैदान के पास सड़क किनारे रहने वाले एक गरीब माता-पिता की 4 साल की मासूम बेटी के साथ दुष्कर्म किया था। घर से लापता बच्ची को ढूंढ़ते हुए पीड़िता के परिजनों ने आरोपी को खून से लथपथ और बेहोश बेटी के साथ रंगेहाथों पकड़ा था। पीडि़ता के परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी रामू को उसी दिन गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

उम्र कैद की सजा सुनाई

रामू की दरिंदगी का शिकार हुई मासूम बच्ची को बेहद गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां 6 दिनों तक चले इलाज के बाद उसकी जान बच गई। इस मामले में करीब दो साल तक चली अदालती कार्रवाई के बाद पुलिस की चार्जशीट के आधार पर जिला अदालत ने 25 अप्रैल 2009 को आरोपी रामू को उसके संगीन गुनाह के लिए उम्र कैद की सजा सुनाई।

15 साल पूरे होने पर सजा कम कराने के लिए याचिका दायर

इस मामले में बड़ा और गंभीर मोड़ तब आया जब हाल ही में जेल में रामसिंह की सजा के 15 साल पूरे होने पर उसके वकील ने हाईकोर्ट में उसकी सजा कम कराने के लिए याचिका दायर की गई। इस याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने फैसले में रामू की आजीवन जेल की सजा कम करते हुए अधिकतम 20 साल कर दी। इस मामले में बहस तब शुरू हुई जब इस मामले में लिखित फैसला सबके सामने आया। इसमें लिखा गया कि आरोपी पर्याप्त दयालु था, उसने पीड़िता को जिंदा छोड़ दिया, इसलिए उसकी सजा अधिकतम 20 साल की जाती है। हाईकोर्ट के इस फैसले से जेल में बंद रामसिंह के जल्द बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है।

कोर्ट के फैसले पर कानूनविदों की राय

हाईकोर्ट के फैसले में दुष्कर्मी रामसिंह के लिए लिखे गए दयालु शब्द को लेकर कानूनविद और महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले स्वैच्छिक संगठन सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका बड़ा सवाल ये है कि आखिर एक चार साल की मासूम के साथ वहशियाना कुकर्म करने वाले अपराधी दयालु कैसे हो सकता है ? दूसरी ओर जस्टिस सुबोध अभ्यंकर और जस्टिस एसके सिंह की डबल बेंच ने अपने फैसले में दयालु लिखने से पहले यह भी लिखा है कि- हाईकोर्ट रामसिंह के केस में जिला कोर्ट के फैसले में कोई गलती नहीं पाता है और आरोपी ने राक्षसी (पैशाचिक) कृत्य किया है जिसके कारण चार साल की अबोध बच्ची का शीलहरण हुआ। कानून के जानकार एडवोकेट मनीष यादव कहते हैं कि हाईकोर्ट के फैसले को लेकर मध्य प्रदेश सरकार को तत्काल सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी ( स्पेशल लीव पिटीशन) दायर करनी चाहिए नहीं तो दुष्कर्मी जल्द जेल से बाहर आ जाएगा।

याचिका लगाने की तैयारी

महिलाओं के हक के लिए लड़ने वाले गैर सरकारी संगठन ज्वाला की प्रमुख व बीजेपी प्रवक्ता डॉ. दिव्या गुप्ता का कहना कि एक मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म करने वाला कभी दयालु नहीं हो सकता। उनका संगठन हाईकोर्ट के फैसले के बारे में कानूनविदों से सलाह-मशविरा कर इसके खिलाफ याचिका लगाने की तैयारी में जुटा है। उनको उम्मीद है कि इस फैसले कि खिलाफ मप्र सरकार भी हायर कोर्ट में अपील करेगी। इस केस में सरकार की ओर से पैरवी करने वाले वकील सुधांशु व्यास का कहना है कि अभी कोर्ट की छुट्टियां चल रही हैं। हाईकोर्ट के फैसले पर आगे की कार्यवाही के लिए एडवोकेट जनरल से चर्चा कर तय किया जाएगा। वहीं आरोपी की वकील शर्मिला शर्मा ने कोई कमेंट करने से इंकार करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद ही यह फैसला दिया है।

गंभीर मामलो में आजीवन का मतलब अंतिम सांस होता है

बता दें कि 1991 में राजीव गांधी हत्याकांड से पहले देश में आजीवन सजा का मतलब 14-15 साल ही लिया जाता था। इस अवधि के बाद आरोपी को छोड़ दिया जाता था। वकील मनीष यादव बताते हैं कि राजीव गांधी हत्याकांड के आरोपियों को भी 15 साल बाद छोड़ने का फैसला तमिनलाडु सरकार और जेल अथॉरिटी कर रही थी तब यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया औऱ वहां तय हुआ कि राज्य सरकार और जेल अथॉरिटी गंभीरतम अपराध के मामलों में सजा कम नहीं कर सकती हैं। आजीवन का मतलब अंतिम सांस होता है। सक्षम कोर्ट ही इस मामले में सजा कम करने का फैसला ले सकता है। इसी आधार पर इंदौर में मासूम से दुष्कर्म के आरोपी रामसिंह ने अपनी सजा कम कराने के लिए हाईकोर्ट की शरण ली।

मप्र सरकार ने दो महीने पहले ही बनाया है कड़ा कानून

बता दें कि महिलाओं के साथ संगीन अपराध के मामले में देश के अग्रणी राज्य में शुमार मध्य प्रदेश सरकार ने करीब दो महीने पहले ही नया कानून लागू किया है जिसके तहत महिलाओं और बच्चियों के साथ रेप करने वालों को आजीवन कारावास की सजा में अब कोई छूट नहीं मिलेगी। ऐसे अपराधियों को अब अंतिम सांस तक जेल में ही रहना होगा। ऐसे में इंदौर हाईकोर्ट के फैसले पर बहस छिड़ने के साथ अब सबकी इस मामले में प्रदेश सरकार के फैसले पर भी नजर है कि वो इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जल्द याचिका दायर करेगी, जिससे एक मासूम बच्ची के साथ हैवानियत करने वाला अपराधी जेल से बाहर नहीं आ पाए।

शिव कुमार संवाददाता दैनिक अच्छी खबर मध्य प्रदेश

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