मध्य प्रदेश में हर मंगलवार को प्रत्येक जिले के कलेक्ट्रेट में होने वाली जनसुनवाई का उद्देश्य है कि लोगों को तत्काल सहायता या इंसाफ दिलाया जा सके। यहां कलेक्टर, एडीएम या डिप्टी कलेक्टर लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उसका निराकरण करते हैं। लेकिन मंगलवार को सागर जिले में जो नजारा देखने को मिला, उसके बाद इस जनसुनवाई को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं।
यहां जनसुनवाई करने के लिए कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर नहीं बल्कि कार्यालय अधीक्षक एम.एल. कोंदर कुर्सी पर बैठे नजर आए। उन्होने 62 आवेदकों के प्रकरण सुने और इन मामलों में कार्रवाई भी सुनिश्चित की। लेकिन ये बात समझ से परे है कि जिन समस्याओं का निराकऱण कलेक्टर या संबंधित अधिकारियों को करनी थी, वहां एक कार्यालय अधीक्षक को आखिर क्यों और कैसे बैठा दिया गया। सागर जिले से तीन कद्दावर मंत्री भूपेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव और गोविंद सिंह राजपूत आते हैं इसीलिए उम्मीद बढ़ जाती है कि वहां की प्रशासनिक व्यवस्थाए चाक चौबंद रहेगी। लेकिन मंगलवार को हुई इस घटना ने जनसुनवाई की पूरी प्रक्रिया को ही मजाक में तब्दील कर दिया है।
ये चुनावी साल है और मुख्यमंत्री लगातार अधिकारियों को चेतावनी दे रहे हैं कि लापरवाही और निष्क्रिय होने पर कार्रवाई की जाएगी। कई अधिकारियों पर तो मंच से गाज गिर चुकी है। लेकिन फिर भी लापरवाहियों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। बताया जा रहा है कि सागर में कलेक्टर बिजी थे और इसी कारण कार्यालय अधीक्षक को जनसुनवाई करने का दायित्व दे दिया गया। लेकिन जिस काम के लिए जिन अधिकारियों को निर्देशित किया गया है, उनकी जगह कोई और कैसे ले सकता है। लोगों के बेहद महत्वूर्ण प्रकरणों के निपटारे का आदेश देना इनके दायरे में आता है या नहीं, ये भी अहम सवाल है। ऐसे में लगता है कि सागर में ये जनसुनवाई उपहास बनकर रह गई है।
शिव कुमार संवाददाता दैनिक अच्छी खबर मध्य प्रदेश