रतनगढ़ दतिया: विंध्यांचल पर्वत पर विराजी माता रतनगढ़ के धाम पर दिवाली की दूज को लगने वाला लख्खी मेला शुरू हो गया है। यहां मध्य प्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश के कई जिलों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां आने से सर्पदंश का असर जहर उतर जाता है इसलिए श्रद्धालु बंध कटवाने आ रहे हैं।जानकारी के अनुसार बता दें कि यहां हर साल क्षेत्र और शारदेय नवरात्रि में भी लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं। लक्खी मेले में इस बार 2 दिन में करीब 30 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। अपनी मन्नत के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पैदल और पेट पलायन करते हुए लेट लेट कर पहुंच रहे हैं। पहाड़ी पर एक मंदिर रतनगढ़ वाली माता और दूसरा उनके भाई कुंवर जी महाराज का है।

मंदिर जाने के लिए यह है रास्ता

दतिया और झांसी की तरफ से आने वाले श्रद्धालुओं डबरा से पिछोर गिजोर्रा होकर मंदिर जा रहे हैं। ग्वालियर भिंड और उत्तर प्रदेश से आने वाले श्रद्धालु बेहट के रास्ते रतनगढ़ मंदिर पहुंचते हैं। सेवड़ा व उसके आसपास के श्रद्धालु डिरोलीपार, अमायन होते हुए मंदिर पर पहुंच रहे हैं।देवगढ़ किला का रास्ता श्रद्धालुओं के लिए चालू है नदी पर पुलिस विशेष सतर्कता बरत रही है पुल वाले स्थान पर नदी के दोनों तटों पर पुलिस बल तैनात है नदी के रास्ते आने वाले श्रद्धालुओं पर रोक लगा दी गई है।

यह है मान्यता

मान्यताओं के अनुसार कुंवर बाबा यानी कुंवर गंगा रामदेव रतनगढ़ वाली माता के भाई हैं। कुंवर बाबा अपनी बहन से बेहद स्नेह करते थे। वे जब जंगल में शिकार करने जाते थे तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे, इसलिए जब किसी इंसान को विषैला जीव सर्प आदि काट लेता है तो उसके घाव पर माता रतनगढ़ के नाम का बंधन लगाते हैं। यानि माता का नाम लेकर तुलसी के गमले की मिट्टी या घर के मंदिर की ही भभूत से सर्प दंश वाले स्थान के ऊपर घेरा बना देते हैं।

ठीक हो जाते हैं सर्प दंश पीड़ित

दीपावली की दूज पर लोग सर्प दंश से पीड़ित व्यक्ति इसके बंद खुलवाने के लिए लाए हैं चंद्र नदी में स्नान के बाद मंदिर की सीमा पर आते ही सर्पदंश पीड़ित अचेत हो जाते हैं उन्हें स्ट्रेचर से मंदिर लाया जाता है इस बार यहां 3000 से अधिक स्ट्रेचर की व्यवस्था की गई है कुंवर बाबा मंदिर में जल के छींटे पड़ने के बाद मंदिर की परिक्रमा लगाने के बाद में ठीक हो जाता है।

मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने किया था हमला

13वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर आक्रमण के बाद रतनगढ़ पर हमला किया था।। अलाउद्दीन खिलजी की नजर यहां की राजकुमारी पर थी। रतनगढ़ के राजा रतन सिंह के सात राजकुमार और एक पुत्री थी वह बहुत सुंदर थी। खिलजी और रतन सिंह के बीच घमासान युद्ध हुआ जिसमें रतन सिंह और उनके छः पुत्र मारे गए। राजा के सातवें पुत्र कुंवर गंगा रामदेव पर रनिवास की रक्षा का भार था। राजकुमारी मांडुला ने उन्हें तलवार देकर विदा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध में जीत के बाद आप ध्वज फहरा देना। कुंवर महाराज ने सैकड़ों मुगल सैनिकों को ढेर किया। युद्ध में उनका हाथ कट जाने से ध्वज नहीं फहरा सकें। शाम होने पर मांडुला को लगा कि कोई अनहोनी हो गई। उन्होंने पहाड़ी पर जीवित समाधि ले ली। युद्ध के बाद जब कुंवर गंगा रामदेव वापस आए तो बहन को नहीं पाकर उन्होंने भी कुछ दूरी पर समाधि ले ली। तभी से यह स्थान अस्तित्व में है राजकुमार की यहां माता के रूप में पूजा होती है।

मेला क्षेत्र में लगी 400 से ज्यादा दुकान है

माता के दर्शन करने आए श्रद्धालुओं के लिए नाश्ते, भोजन, प्रसाद, पूजन सामग्री, खिलौने आदि की दुकानें लगी है। पहाड़ी से नीचे मंदिर क्षेत्र के प्रांगण में 150 से ज्यादा दुकाने है। 150 से अधिक दुकान मेन रोड पर संचालित की जा रही है। कुंवर महाराज के मंदिर के पास से ग्वालियर वाले रास्ते पर भी 100 से ज्यादा दुकानें सजी हैं।

पुलिस को चैलेंज कर डाकू आते थे दर्शन करने

बीहड़, बागी और बंदूक के लिए कुख्यात रही तीन प्रदेशों में फैली चंबल घाटी के डकैत भी यहां आते रहे हैं। डाकू पुलिस को चैलेंज देकर इस मंदिर में दर्शन करने आते थे। इस दौरान एक भी डकैत नहीं पकड़ा गया। चंबल के बीहड़ भी ऐसे डाकू स्वीकार नहीं करते थे जिसने इस मंदिर में घंटा ना चढ़ाया हो। इलाके का ऐसा कोई बागी नहीं जिसने यहां आकर माथा ना टेका हो।

माधव सिंह, मोहर सिंह, मलखान सिंह, मान सिंह, जगन गुर्जर से लेकर फूलन देवी ने माता के चरणों में माथा टेक कर घंटा चढ़ा कर आशीर्वाद लिया है। इस दौरान मंदिर या जंगल में आने वाले भक्तों से डाकुओं ने वारदात नहीं की।

माता रानी का दरबार दतिया जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर सिंध नदी के किनारे पहाड़ पर स्थित है। मंदिर के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन डबरा का है कि यहां से मंदिर की दूरी 55 किलोमीटर है यहां से सड़क के रास्ते पिछोर से होकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। दतिया जिले से रतनगढ़ माता मंदिर पहुंचकर मार्ग पर सिंध नदी पर बना पुल टूट चुका है। ऐसे में दतिया जिले के इंदरगढ़ थरेट होते हुए नदी का रास्ता बंद है।

शिव कुमार संवाददाता दैनिक अच्छी खबर मध्य प्रदेश

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